And son Poems

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पाक फ़िक्र
by Sumit Maurya

तेरे सदके जो मेरा लम्हा ये महफूज़ हुआ,
के अब तो हर वक्त उस लम्हे को जी सकता हूं
तेरे सदके जो ये पाक इश्क महसूस हुआ
के अब तो हर शख्स से मै इश्क तो कर सकता हूं।
तेरी रहमत ही है कि फूल खिले दिल ए बघिचो में
वर्ना बंजर सा एक तन्हा ए जमीं मंजर था,
चुभती धूप थी ना कोई पेड़ ना पौधा
रेत ही रेत थी ना कोई नदी समंदर था।
तेरी याद करूं रोउं के मैं शिकवा करूं,
तुझसे गिला भी है, इश्क भी और रिश्ता भी।

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पाक फ़िक्र
by Sumit Maurya

तेरे सदके जो मेरा लम्हा ये महफूज़ हुआ,
के अब तो हर वक्त उस लम्हे को जी सकता हूं
तेरे सदके जो ये पाक इश्क महसूस हुआ
के अब तो हर शख्स से मै इश्क तो कर सकता हूं।
तेरी रहमत ही है कि फूल खिले दिल ए बघिचो में
वर्ना बंजर सा एक तन्हा ए जमीं मंजर था,
चुभती धूप थी ना कोई पेड़ ना पौधा
रेत ही रेत थी ना कोई नदी समंदर था।
तेरी याद करूं रोउं के मैं शिकवा करूं,
तुझसे गिला भी है, इश्क भी और रिश्ता भी।

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