Sumit Maurya

September 3, 1984 - Earth
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पाक फ़िक्र

तेरे सदके जो मेरा लम्हा ये महफूज़ हुआ,
के अब तो हर वक्त उस लम्हे को जी सकता हूं
तेरे सदके जो ये पाक इश्क महसूस हुआ
के अब तो हर शख्स से मै इश्क तो कर सकता हूं।
तेरी रहमत ही है कि फूल खिले दिल ए बघिचो में
वर्ना बंजर सा एक तन्हा ए जमीं मंजर था,
चुभती धूप थी ना कोई पेड़ ना पौधा
रेत ही रेत थी ना कोई नदी समंदर था।
तेरी याद करूं रोउं के मैं शिकवा करूं,
तुझसे गिला भी है, इश्क भी और रिश्ता भी।
बिना बताए रुक्सती भी कोई ठीक बात नहीं
के तू साथी था, हमराज़ भी, फरिश्ता भी।
अब तो बस याद, कमी, आंखों में नमी होती है
यही कुछ बात है जो आपस में अभी होती है
वो ऐसा था कि वैसा था,
वो माहिर था कि जाहिर था
वो बेपरवाह, वो लापरवाह,
वो हाकिम था, वो लाज़िम था
वो जोभी था ना रोगी था,
वो शक्स जिसने सब कुछ सहा,
कुछ न सुनके भी सब कुछ सुना
यही कुछ बात है जो आपस में अभी होती है
अब तो बस याद, कमी, आंखों में नमी होती है।
तेरे रूखसार मिले हमको जो विरासत में
तेरी अदा ही है मेरा जो वज़ूद बना
तेरी हिम्मत ने किया शीरकत ए वजीरों में
किसी का भाई कभी यार कभी पेसर तू बना।
तुझे मालूम था कि वक्त ये भी आएगा
शिकायत ना थी दस्तूर ए ज़माने से
बस एक फ़िक्र थी कि तेरे बाद क्या होगा
एक यकीं दिला ही दिया बस इसी बहाने से।
तेरे सदके जो मेरा लम्हा ये महफूज़ किया,
के अब तो हर वक्त उस लम्हे को जी सकता हूं
तेरे सदके जो ये पाक इश्क महसूस हुआ
के अब तो हर शख्स से मै इश्क तो कर सकता हूं।
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