मैंने खुदा की
फज़लें भी लौटा दीं,
वो खुदा
जिसकी तरबियतें
एक मजार में छुपी हैं,
वो भी
किसी फ़क़ीर के करीब,
हँसता हूँ
उसकी करामातों पर,
उसकी बदनसीबीयों पर
मजारों का देवता
आज खुद की मजार के
बाहर बैठा है,
वक़्त के इंतज़ार में
पर वो कब का
गुजर गया करीब से,
साँसे ले गया
मरीज से,
बस जिंदा रह गया है
मजारों में,
एक एक झूठे किरदारों में