Sumit Maurya

September 3, 1984 - Earth
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वो रात

वो मिला मुझे कल रात कहीं
उस चमचमाते गलियारे में,
कुछ बात कहीं, क्या बात कही
वो बात कहीं, जो बात सही।
के मदहोशी बेमानी है
गर लुफ्त ना उसका लिया जाए,
के जिंदगी की भी कुछ यही कहानी है
गर दिल खोल उसे ना जिया जाए।
उठे तड़पे और गुज़र गए,
यूं कई गुमनाम लम्हों की तरह।
जी रहे रेल की पटरी जैसे
सफर साथ वो करते है,
कहने को जिंदा भी है
पल पल घुट घुट के मरते हैं।
सब साथ बचा ले जाना है
ये मरने का बहाना है,
जब जिंदा है तब जिंदा हैं
जब मर गए बस गुज़र गए
तब गुज़र सब यादों से
एक काम तो अच्छा कर जाओ,
रहते लम्हों में सवर जाओ,
दिल खोल जिंदगी लूटो तुम
एक बेइंतहा मोहब्बत कर जाओ।
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