Sumit Maurya

September 3, 1984 - Earth
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वाकिफ

मेरी हर तारीख़ में बावक्त दिन बहुत सारे हैं
के हर पल को में पत्थर की लकीरों सा जो लिखता हूं
मैं शायद हूं किसी उम्मीद की परछाइयों सा
अमिट स्याही से लिखा इश्क़ का दरिया सा दिखता हूं।
फासले लाख रखो तो अंधेरा ही अंधेरा है
जो दिल खोल बैठो तो नुमाइश ए फिज़ा सा दिखता हूं,
फिज़ाओं में घुली है रौनक ए चांदी तरल बन के
जो वाकिफ हो तो शीशों में मै खुद दिखता फरिश्ता हूं।
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