उसने तो बस घर के बाहर क़ दम रखने की कोशिश की थी,
एक नए चे हरे, एक नए सवेरे को देखने की हिम्मत की थी।
पर शायद, ही शायद - ये जमाना उसकी ये उडान सह न सका, उसकी हिम्मत, चमक, उसकी शबाशी - कोई दे ख ना सका
उसे एक बार फिर पिं जरे की कै द में लौटाने की साजिश की गई थी।