Sumit Maurya

September 3, 1984 - Earth
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ये दस्तूर

कभी सौ पन्नों से बेहतर आंखों का बायां होता है
लाख बात करो पर इश्क़ तो आंहो में बायां होता है
कभी उस दर्द के रिश्ते भी वो बात कर जाते है
जिस बात का ना इल्म ना शक ना गुमां होता है
उसकी चाहत भी एक दस्तूर सी बन बैठी हैं
ना चहके भी निभानी होती है मुझको
सांस बन बैठा है मेरी जिंदगी में वो
पता चलता भी नहीं पर लिए जा रहा हूं मैं
कुछ अजीब सी बात है उसमे
के प्यार किए जा रहा हूं मैं।
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