Srimati Tara Singh

India

कब खामोश कर दे दिल को ये हिचकियाँ - Poem by Srimati Tara Singh

कब खामोश कर दे दिल को ये हिचकियाँ, पता
कब लगे भिनभिनाने, मक्खियाँ क्या पता

हादसों का शहर है, हादसों से भरी है जिंदगी
कब चीखकर माँग उठे बैसाखियाँ, क्या पता

उड़ जा रे पक्षी शाख छोड़कर, बेदर्द जमाना
कब आ जाये पर कतरने लेकर कैंचियाँ,क्या पता

जीवन है एक नदिया, तुम सीख ले उसमें तैरना
कब तक मिलेगी माँ की थपकियाँ,क्या पता

मत देर कर,लगा ले उससे नेह,दुखों के सैलाब में
कब बह जाये कागज की ये किश्तियाँ, क्या पता
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