Geet Chaturvedi

27 November 1977 - / Mumbai / India

टूटकर भी तनी हुई - Poem by Geet Chaturvedi

जीवन जैसा भी था वर्तुल था
सीधी रेखा बीच से टूटा हुआ वर्तुल थी
टूटकर भी तनी हुई
टूटने से भी तन सकता है कोई का आकार में अनुवाद वह
जो चौरस था वह भी वर्तुल
उसके चार केंद्र थे जो अपनी जगह से इतने अनमने
कि ग्रामदेवताओं की तरह केंद्रीयता का बहिष्कार कर सीमाओं पर जा बसे
हर आकार में वर्तुल होने का आभास था
और यह भी कि जीवन का अर्थ आकार में नहीं, आभास में बसा होता है
एक पत्थर थी भाषा के भीतर स्त्रीलिंगी होने की हैरत से भरी
उसका स्त्रीत्व पहुंचा मुझ तक पहले फिर उसका पत्थर होना
स्त्रीलिंगी पत्थरों का उद्धार पवित्र हृदयों से नहीं पवित्र पैरों से होता है
इस हैरत से भरा मैं इस सोग में ख़ाली हुआ
कि मेरे पैरों में हमेशा मैल रही
इतना प्रेमा मैं तुमसे कि तुम्हें उद्धार की ठोकर भी न मार पाया
कि पवित्र हृदयों की अहमियत पवित्र पैरों के मुक़ाबले कम ही रही हमेशा
हर पत्थर की कामना यह कि पानी से हवा से किनारों की रेत से घिसे उनका अनाकार
हर आभास में पाए वह वर्तुल होने का आकार
जैसे बांस-वृक्ष की संधियां वर्तुल अंगूठियों से जड़ी हुई
बीसियों केंद्रों के अनमनेपन का अचंभा जो वर्तुल, तुम वह जीवन थीं
जोबन जिस जीवन का जोगनें ले गईं
ज्यों यह जीवन-संध्या नहीं
पूरा जीवन ही संध्या है
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