Ashok Vajpeyi


प्रेम के लिए जगह - Poem by Ashok Vajpeyi

उसने अपने प्रेम के लिए जगह बनाई

बुहार कर अलग कर दिया तारों को
सूर्य-चन्द्रमा को रख दिया एक तरफ़
वनलताओं को हटाया
उसने पृथ्वी को झाड़ा-पोंछा
और आकाश की तहें ठीक कीं

उसने अपने प्रेम के लिए जगह बनाई
152 Total read